तेजस्विता के साथ सौम्यता ,
अगाधता के साथ उत्तुंगता,
लघुता के साथ महानता,
मनस्विता के साथ उर्जस्विता, सरलता के साथ तार्किकता जैसे
अनंत अनंत गुणों के निधान गुरु गौतम स्वामी के नाम में अद्भुत शक्ति का ऐसा प्रभाव पुंज है जो कंकर को शंकर और जीव को शिव बना देने में सक्षम है।

एक जाप….एक स्मरण…एक साधना करें –

गुणीयाजी गौतम स्वामी कैवल्य ज्ञान कल्याण भूमि

गुणी होना सरल है पर गुणारागी मिलना विरल है। गणधर गौतम प्रभु का आभा मण्डल दिव्य प्रकाश के तेज से चमकता था।
गौतम प्रभु अन्य के गुणों को देखकर मुरझाते नहीं अपितु महकते थे‌। अन्य की प्रशंसा से जलते नहीं खिल जाते थे, अन्य की चढ़ती बढ़ती प्रतिष्ठा से चिढ़ते नहीं थे अपितु आकृष्ट संतुष्ट होते थे। उनके विमल विचार और अमल आचार का स्तर बहुत ऊंचा था। शत शत नमन विराट व्यक्तित्व को।

गुणीयाजी गौतम स्वामी कैवल्य ज्ञान कल्याण भूमि

हम कौन हैं? हमारे जीवन का अर्थ क्या है? इस प्रश्न का हमें उत्तर तलाशना हो या फिर जीवन को सही अर्थों में गढ़ना हो तो स्वामी गौतम का स्मरण करना चाहिए। ताकि हमारै जीवन में विद्वता के साथ विनम्रता, सदाचार, कठोरता के साथ कोमलता जैसे परस्पर विरोधी गुण हमारे जीवन में समाहित हो जाए और हम रत्नाकर बन जाए।

इस बारे में मुनि मनितप्रभ सागरजी का कथन है कि

भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात जैन संघ का नायकत्व संभालने वालों में महत्वपूर्ण शिष्यों में प्रमुख व पहले गणधर गौतम स्वामी थे । जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि जीवन को समझने और समझाने के सूत्र भी दिए।
जीवन में सफल होने के लिए एक बेहतर वक्ता और बेहतर श्रोता कैसे हुआ जाता है? इसकी भी प्रेरणा हमें स्वामी गौतम से मिलती हैं। दोनों गुणों को उन्होंने अपने अंदर समाहित कर रखा था। करीबन साढ़े 500 साल पूर्व गौतम स्वामी एक मिसाल बनकर हमारे सामने नायक के रूप में उपस्थित हुए थे।
इस संदर्भ में उपदेश माला की पांचवीं गाथा मननीय है –

लब्धि निधान जब परमात्मा की देशना सुनते तो उनकी मुख-मुद्रा, उनकी आंखें और हृदय विस्मय से प्रफुल्लित रहते। होठों पर बिखरती मंद-मंद मधुर मुस्कान उनकी आंतरिक पारदर्शी श्रद्धा में घुल मिलकर अंग -अंग को अनहद आनंद से ओतप्रोत कर देती।
प्रथम गणधर अर्थात समस्त श्रुत ज्ञान के धारक ।14 पूर्वधर। श्रुतकेवली गौतम गणधर निज ज्ञान के दर्पण में समस्त तत्व पदार्थ को आत्मसात करते थे।
वें ज्ञानी तो थे पर अपने अभिमान का पूर्णतया त्याग कर दिया था। सहज भाव से प्रवचन को मात्र सुनते ही नहीं अपितु अपने हृदयंगम भी करते थे। समुद्र को मात देने वाली गौतम गुरु की गंभीरता उनके कद पद को हिमालय से भी ऊंचा बना देते हैं।

Gautham Swami

उदार मना गौतमस्वामी